प्रशांत किशोर बिहार में क्‍यों नहीं हासिल कर पाएंगे केजरीवाल वाली कामयाबी – Prashant Kishor Arvind Kejriwal Jansuraj achieve AAP like success in bihar election opns2

Date:

- Advertisement -


बिहार विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर और उनकी जनसुराज पार्टी को जबरदस्त लाइमलाइट मिल रही है. कहा जा रहा है कि वह एनडीए का खेल बिगाड़ सकते हैं. शायद यही कारण है कि प्रशांत किशोर का एटीट्यूड भी बदला बदला सा दिखने लगा है. वो पत्रकारों से बात करते हुए बहुत जल्दी आपा खो दे रहे हैं. पिछले दिनों कम से कम 3 सुलझे हुए पत्रकारों से वो ऐसे उलझे जो उनके लिए कतई जरूरी नहीं था. इस तरह का व्यवहार कोई भी शख्स गुस्सा या खीझ में करता है. मतलब या तो उन्हें अहसास हो गया है कि वो सत्ता में आ रहे हैं या ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें यह पता चल गया हो कि उनकी पार्टी बहुत बुरी तरह चुनाव परिदृश्य से गायब हो रही है.

सवाल यह उठता है कि क्या प्रशांत किशोर ने अपनी जन सुराज पार्टी के जरिए बिहार की राजनीति में एक नया विकल्प पेश करने की जो कोशिश की है, उसमें वे कितने सफल हो रहे हैं. वे रोजगार, शिक्षा, भ्रष्टाचार-मुक्त शासन और जाति-विहीन राजनीति के मुद्दों को लेकर बिहार के लोगों को पिछले 2 साल से जगा रहे हैं.

जाहिर है कि उनकी रणनीति बहुत कुछ दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) की शुरुआती रणनीति से मिलती-जुलती है. केजरीवाल ने 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन की लहर पर सवार होकर दिल्ली में स्थापित पार्टियों (कांग्रेस-बीजेपी) को चुनौती दी और 2015 में 28/70 सीटें जीत लीं.

पीके भी 2022 से 5,000 किमी की पदयात्रा कर बिहार के गांवों में घूमे, आरोप लगाए (जैसे नीतीश कुमार के मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के आरोप) और दावा किया कि जन सुराज 2025 चुनाव में 243 में से 200 से अधिक सीटें जीतेगी. तो क्या यह समझा जाए कि प्रशांत किशोर भी अरविंद केजरीवाल की तरह बिहार में दिल्ली वाली सफलता दोहराएंगे? या उन्हें केजरीवाल बनने में अभी काफी वक्त लगेगा?

1.बिहार और दिल्ली, सामाजिक-राजनीतिक माहौल का फर्क कितना असरदार होगा

दिल्ली में जाति की बजाय शहरी मध्यम वर्ग, प्रवासी मजदूर और भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) ने केजरीवाल को जबरदस्त सपोर्ट किया. दिल्ली में केजरीवाल ने फ्री बिजली-पानी जैसे त्वरित लाभ दिए और वोटर ‘चेंज’ के लिए तैयार हो गए. पर बिहार में शायद स्थितियां ऐसी नहीं है. 

बिहार में जाति (यादव, कुशवाहा, मुस्लिम, दलित) का गणित चुनाव तय करता है. आधे से अधिक वोटर अपनी जाति के उम्मीदवार को प्राथमिकता देते हैं. पीके का ‘जाति भूलो, रोजगार चुनो’ नारा अच्छा लगता है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम नहीं करता. बिहार में लालू-नीतीश-बीजेपी की बाइपोलर राजनीति है.

यहां कोई शख्स पूरे चुनाव के दौरान यह कहता है कि वह जाति के नाम पर वोट नहीं डालेगा पर वोटिंग का टाइम आते आते जातीय वर्चस्व की बात आ जाती है. किसी और जाति को हराने के लिए अपनी जाति के कैंडिडेट को वोट देना मजबूरी हो जाती है. प्रशांत किशोर के बहुत से समर्थक जो आज कह रहे हैं कि वो जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं देंगे , वो अंतिम चरण आते-आते घोर जातिवादी और धर्मवादी हो जाएंगे.

2. पीके की पृष्ठभूमि: स्ट्रैटेजिस्ट vs एक्टिविस्ट

केजरीवाल एक सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्होंने सूचना के अधिकार को लेकर बहुत काम किया. बाद में मैग्सेसे अवॉर्ड भी मिला, अन्ना हजारे जैसे आइकॉन के सबसे करीबी बन चुके थे. ‘आम आदमी’ की छवि ऐसी बनाई कि एक वक्त बीजेपी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वो सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरे थे. एक समय ऐसा था कि उन्हें देश भर से छोटे आंदोलनों को समर्थन में आने के लिए आमंत्रण मिलने लगा था. 

दूसरी तरफ पीके चुनावी स्ट्रैटेजिस्ट रहे हैं. उन्होंने नरेंद्र मोदी (2014), नीतीश (2015), केजरीवाल (2020), ममता (2021) सबके लिए काम किया.  उनकी ‘कंसल्टेंट’ के तौर पर ऐसी इमेज बनती है जो पैसा कमाने के लिए कुछ भी कर सकता है. बिहार क्रांति लाने वाले लोगों की भूमि रही है. यहां लोकनायक जयप्रकाश नारायण , लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे क्रांतिकारी विचारधारा वाले लोगों को जनता पसंद करती रही है. शायद प्रशांत किशोर को बिहारी जनता पसंद तो करती है पर उनके लिए वो कुर्बानी को तैयार नहीं है.

3. संगठन और जमीनी ताकत की कमी

केजरीवाल ने 2 साल के आंदोलन के बाद मजबूत संगठन बनाया. दिल्ली में 10 साल बाद भी उनको भरपूर फंडिंग मिल रही है और उनके कार्यकर्ता एक्टिव हैं. 2013 में ही एक समय ऐसा था कि दिल्ली में हर गली-मुहल्लों में छोटी-छोटी बात के लिए आप के कार्यकर्ता टोपी पहने दिखाई देते थे.हर बात के लिए आम आदमी पार्टी की प्रेस विज्ञप्ति समाचार पत्रों के कार्यालयों में घूमती रहती थी. 

जबकि जनसुराज के लिए अभी ये बहुत दूर की कौड़ी है. इसके पीछे बिहार और दिल्ली के बीच क्षेत्रफल भी बहुत मायने रखता है. दिल्ली बहुत छोटी और घनी बसी हुई है. जबकि बिहार एक बहुत बड़ा स्टेट है. X पर एक यूजर लिखता है कि पीके पुश्पम प्रिया 2.0 हैं. हाइप ज्यादा, क्राउड कम. तमाम सर्वे में जन सुराज को 10 से 12% प्रतिशत वोट मिलते दिख रहा है.जाहिर है कि जनसुराज को कुछ सीटें भी मिल सकती हैं पर किंगमेकर बनने की उम्मीद कम ही है.

4. आंदोलन की कमी: ‘अन्ना’ फैक्टर गायब

केजरीवाल के पास जन लोकपाल आंदोलन था, जो राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ उबाल था.  पीके के पास ऐसा कोई बड़ा मूवमेंट नहीं है. राहुल गांधी और तेजस्वी ने एसआईआर के खिलाफ आवाज उठाई . तेजस्वी लुभावने वादे कर रहे हैं. कांग्रेस जाति जनगणना और आरक्षण में बढ़ोतरी की राग अलाप रही है. जन स्वराज के पास इनमें से कुछ नहीं है.

केजरीवाल के आंदोलनों के चलते उन्हें पूरे विश्व से सपोर्ट मिल रहा था. एक बार तो पूरे अमेरिका में 20 शहरों के सपोर्टरों को उन्होंने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करके माहौल बनाया था. देश के सबसे बड़े वकीलों के तमाम नाम, सबसे बड़े एक्टिविस्टों के कई नाम, तमाम टेक्नोक्रेट, पूर्व प्रशासनिक अफसरों की एक लंबी फेहरिस्त उनके साथ थी. किशोर भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं पर ऐसे दिग्गजों से मिल रहे समर्थन के मामले में अभी केजरीवाल से मीलों पीछे हैं. 

5. रणनीतिक अंतर

केजरीवाल की राजनीति शुरूआती दौर से ही स्कूल और हॉस्पिटल पर केंद्रित रही. पर स्थानीय राजनीति करते हुए भी उन्होंने मोदी और शाह को हिट करना नहीं छोड़ा था. वो हर रोज अपने भाषण में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भेजने की बात करते थे.

पीके भी उसी स्टाईल की राजनीति कर रहे हैं. डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर मर्डर केस, अशोक चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का अंदाज उनका लगभग वैसा ही है. पर प्रशांत किशोर आज भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ उस लेवल पर नहीं जा पा रहे हैं जिस लेवल पर राहुल गांधी या तेजस्वी यादव जा रहे हैं. यही कारण है कि बीजेपी से नाराज वोटर्स को अपने पाले में कितना कर पाएंगे इसमें संदेह होता है.

—- समाप्त —-



Source link

- Advertisement -

Top Selling Gadgets

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

five + fifteen =

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

Access Denied

Access Denied You don't have permission to access...

CAMS share price edges higher as board approves stock split in 1:5 ratio

Shares of Computer Age Management Services (CAMS), the...

IND vs WI, 2nd Test: Campbell, Hope defy India on Kotla roadblock | Cricket News

West Indies' Shai Hope celebrates after scoring...

Top Selling Gadgets