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Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत का धागा मां की श्रद्धा और संतान की सुरक्षा का प्रतीक है. इसे उतारते समय अगर धार्मिक नियमों का पालन किया जाए तो संतान पर मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है. चाहे आप इसे पानी में विसर्जित करें, तुलसी/पीपल पर चढ़ाएं या पूजा स्थल पर रखें, हर स्थिति में यह शुभ फल ही देता है. बस ध्यान यही रखना है कि इसे कभी भी लापरवाही से न फेंका जाए.

जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व नहीं है, बल्कि यह मातृत्व और संतान के बीच के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार है. खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में इसका पालन बहुत श्रद्धा से किया जाता है. माताएं तीन दिनों तक व्रत करती हैं और इस दौरान वे बच्चे को जितिया का धागा पहनाती हैं. इस धागे को पहनाना संतान की सुरक्षा और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है.
ज्यादातर महिलाएं व्रत के बाद इस धागे को पवित्र नदी, तालाब या कुएं में प्रवाहित करती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से जीमूतवाहन का आशीर्वाद बना रहता है और संतान पर आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. इसे शुभ और धार्मिक दृष्टि से सही माना गया है.
2. तुलसी या पीपल के नीचे रखना
अगर नदी या तालाब जाना संभव न हो तो महिलाएं इस धागे को तुलसी या पीपल के पौधे के नीचे भी रख सकती हैं. तुलसी और पीपल दोनों ही पेड़ बेहद पवित्र माने जाते हैं और उन पर धागा चढ़ाने से संतान की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि बनी रहती है.
एक और तरीका है कि इस धागे को घर के पूजा स्थल पर रख दिया जाए. माना जाता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और मां का आशीर्वाद हमेशा बच्चों पर बना रहता है. यह तरीका उन लोगों के लिए बेहतर है जो धागे को कहीं बाहर न ले जाना चाहें.
क्या न करें
1. धागे को कभी कूड़े में न फेंकें.
2. इसे अपवित्र जगह या पैरों के नीचे न आने दें.
3. धागे का अनादर न करें, क्योंकि यह आस्था और रिश्ते का प्रतीक है.