मैनपुरी1 दिन पहले
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दिहुली नरसंहार का मुख्यारोपी संतोष 4 बार ग्राम प्रधान रहा।
फिरोजाबाद के दिहुली गांव में 44 साल पहले हुए 24 दलितों के नरसंहार का फैसला सुनाया जा चुका है। नरसंहार से जुड़ा एक आरोपी अभी भी 44 वर्षों से पुलिस की पकड़ से दूर है। जिसको लेकर अभी भी मुकदमा न्यायालय में चल रहा है।
नरसंहार को अंजाम देने वाले मुख्य आरोपी संतोष उर्फ संतोषा और राधे थे। हालांकि नरसंहार को अंजाम देने के 17 आरोपी थे। जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है। बाकियों को सजा सुनाई जा चुकी है। एक आरोपी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर है। जिसे पुलिस ने बागोड़ा घोषित कर दिया है। हालांकि लोग मुख्य आरोपी राधे और संतोषा को ही मानते हैं। बात अगर आरोपियों के परिजनों की करें, तो परिजनों का कहना है इतना बड़ा नरसंहार मान सम्मान की लड़ाई को लेकर हुआ था।
दिहुली के ही निवासी बताए जाते संतोषा
जानकारी के अनुसार मुख्य आरोपी संतोष उर्फ संतोष के पिता ठाकुर जय सिंह गांव दिहुली के ही निवासी बताए जाते हैं जो अपनी ससुराल मैनपुरी की ग्राम सभा बिक्रमपुर कंचनपुर के मजारा जांक में आकर निवास करने लगे थे। वह कानपुर के सूत मिल में नौकरी करते थे।
ठाकुर जय सिंह के घर में 1952 में पुत्र ने जन्म लिया। जिसका नाम उन्होंने संतोष रखा इसके बाद उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया। जिसका नाम गुड्डी देवी था। हालांकि संतोष का आना-जाना अपनी ननिहाल जांक और दिहुली दोनों जगह था। बताया जा रहा है नरसंहार के समय संतोष उर्फ संतोषा की उम्र 29 वर्ष की थीं। उस समय के दशक में डाकुओं का बोलबाला था।

24 दलितों की गोलियों से भूनकर हत्या
सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि इतना बड़ा नरसंहार एक स्त्री को लेकर हुआ था। एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति का एक सवर्ण जाति की स्त्री के घर आना जाना था जिसको लेकर दिहुली में नरसंहार हो गया था। दिनदहाड़े 18 नवंबर 1981 को गांव में 24 दलितों की गोलियों से भून कर हत्या कर दी गई थी।
1985 में जेल से लड़ा था चुनाव
उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में भूचाल आ जाने के बाद हत्याकांड की आरोपियों को जेल भेज दिया गया था। जिसमें मुख्य आरोपी संतोष और संतोष अभी शामिल था। बताया जा रहा है कि उस समय संतोष उर्फ़ संतोषा ने अपनी ग्राम पंचायत के लिए प्रधान पद के लिए जेल से 1985 में चुनाव लड़ा था। जो जेल में होने के कारण हार गया। जिसके 1988 में उसकी जमानत मिल गई।
जिसके बाद जमानत पर बाहर होने पर उसने 1991 मैं ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ा। जिसमें जीत दर्ज कर 1995 तक गांव का प्रधान रहा। इसके बाद गांव में फिर चुनाव हुआ 1995 वर्ष 2000 तक फिर ग्राम प्रधान रहा। जिसके बाद किन्ही कारणों के चलते वर्ष 2000 से 2005 तक उसके मामा के लड़के चरण सिंह ने प्रधानी का चुनाव लड़े और जीत गए। लेकिन प्रधानी संतोष ने ही की उर्फ़ संतोषा ने ही की।
लगातार 2015 तक गांव के प्रधान रहे
जिसके बाद वर्ष 2005 में गांव की प्रधानी का फिर से चुनाव हुआ। जिसमें संतोष उर्फ़ संतोष ने फिर से जीत दर्ज की। लगातार 2015 तक गांव का प्रधान रहा। कितने बड़े नरसंहार को अंजाम देने के बाद भी अपने जीवन में चार बार स्वयं प्रधान रहा और एक बार अपने मां के लड़के को प्रधान बना दिया। जिसके बाद स्वास्थ्य लगातार कमजोर रहने लगा। 23 जुलाई 2024 को 72 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से उसकी मृत्यु हो गई।
मान सम्मान की लड़ाई को लेकर ही हुआ था नरसंहार
दैनिक भास्कर से बातचीत में भतीजे महावीर सिंह ने बताया किके चाचा मान सम्मान की लड़ाई लड़ते थे। इतना बड़ा नरसंहार मान सम्मान की लड़ाई को लेकर ही हुआ था। डकैती चोरी लूट आदि जैसी बातें तो बाद में उनके साथ जोड़ दी गई थी। वह चोरी डकैती लूट आदि जैसी कोई घटना को अंजाम नहीं देते थे। मान सम्मान की लड़ाई थी। जिसको लेकर इतना बड़ा नरसंहार हो गया।
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